सगुनी कागा सगुन बोल
कभि त मेरा चैक बोल
मेरि जिकुड़ि भि हरसौ गैल्या
मेरा मन भि पत्यौ हे सगुनी कागा
चिठ्ठी पत्री न रन्त रैबार
बिसरिग्य स्वामि जि गौं गुठ्यार
निर्मोहि पापी वै सैर बजार
भूलिग्या मै भि ज्यूंदु छौं घर
इकल्वारस्य छौं मैन कख त जाण
घर समाळ्न कि डोखरि कमाण
अदान नौन्याळ उनि क्वांसु पराण
कैमा सुणौण कैमा लगाण
मैत कु मुख देखणु कनै
द्वि दिन सुख सोचणु कनै
घास पाणी धन चैन खल्याण
थिड़ि-थिड़ि फिरड़ि-फिरड़ि मर जाण
नौकरि तु मेरि बैरि ह्वैगे
सुख मांगि छौ तरास द्यैगे
सौत सि ज्यू जगाई त्वैन
सदानि खून सुखाई त्वैन
सुभ घड़ी सुभ दिन बार
दिखैजा मेरा भि मोर द्वार
याद गडै दे ऊंतैं मेरी
त्वै खलौंलु दूध भात पुरी