परिचय एवं उद्देश्य
लोकरंग उत्तरकाशी एक विचार है, अपनी लोक भाषा और सांस्कृतिक विरासत से विमुख हो रही पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का।
उत्तराखण्ड के सीमान्त जनपद उत्तरकाशी में लोकभाषा एवं मौलिक संस्कृति के संवर्धन,प्रचार-प्रसार व संरक्षण के उद्देश्य से लोकगायक,कवि/साहित्यकार ओम बधाणी एवं पत्रकार,रंगकर्मी सुरेन्द्र पुरी ने अपने साथियों के साथ मिलकर 16 अक्टूवर 2015 को लोकरंग उत्तरकाशी का गठन किया।
16 अक्टूवर 2015 को उत्तरकाशी(बाड़ाहाट) में विश्व के 36 देशों के 150 से अधिक नागरिकों के साथ यहां के गांव-गांव में आयोजित धार्मिक व सांस्कृतिक कार्याें में शामिल लोक कलाकारों को एक मंच पर लाकर उनकी लोककला(पांडव नृत्य,रांसो नृत्य,मौलिक रंगमंचीय विधा स्वांग,बाजूबंद,ढ़ोल पैंसारा आदि)के मंचीय प्रस्तुतिकरण के साथ लोकरंग की यात्रा आरम्भ हुई। लोकभाषा व संस्कृति संरक्षण की ओर बढ़ते कदम के साथ लोकरंग ने लोकभाषा पर व्याख्यान,काव्यगोष्ठि,विचार गोष्ठि आयोजन किया। पहाड़ के लोकरंग में बसे यहां के गीत-संगीत व नृत्य की विधाओं को लेकर प्रदेश व देश के विभिन्न समारोहों में लोक कलाकारों से प्रतिभाग करवाकर भाषा व संस्कृति संरक्षण का कार्य पूरी निष्ठा से जारी है।
गतिविधियां
लोकरंग उत्सव 2015 – 16 अक्टूवर 2015
लोकरंग साहित्य उत्सव – 06 दिसम्बर 2015(इस आयोजन में उत्तराखण्ड के प्रख्यात लोक गायक/कवि श्री नरेन्द्र सिंह नेगी,गणेश खुगशाल ”गणि“,ओम प्रकाश सेमवाल,जगदम्बा चमोला,गजेन्द्र नौटियाल, ओम बधाणी ने काव्यगोष्ठि में भाग लिया। यहां ”कैसे बचेंगी लोक भाषायें“ विषय पर व्याख्यान हुआ, जिसके बाद 150 से अधिक लोगों के हस्ताक्षर युक्त प्रस्ताव उत्तराखण्ड शासन को भेजा गया। सरकार द्वारा कृत संतोषजनक कार्यवाही(शासन द्वारा राज्य में लोकभाषा अकादमी का गठन,पाठ्यक्रम में लोकभाषा को सम्मिलित्त करने का निर्णय) का प्रतिउत्तर लोकरंग उत्तरकाशी को प्राप्त हुआ।
लोकरंग सम्मान 2015(लोक कलाकारों/साहित्यकारों को सम्मान के उद्देश्य से आरम्भ यह पुरस्कार हर वर्ष दिया जयेगा। प्रथम लोकरंग सम्मान प्रख्यात लोकगायक स्व0 पातीराम नैटियाल जी को दिया गया)
इसके अतिरिक्त गंगू रमोला नृत्य नाटिका का बाड़ाहाट क्षेत्र की मौलिक स्वांग विधा के साथ प्रस्तुतिकरण टिहरी,सरनौल के पांडव नृत्य, बैंगलोर में लोक कलाओं की प्रस्तुति
उमेश डोभाल स्मृति समारोह 2016(विगत 25 वर्षों से राज्य एवं देश के विभिन्न भागों मे आयोजित होते आ रहे इस आयोजन को प्रथम बार उत्तरकाशी में आयोजित करवाया गय
संस्था के भावी कार्यक्रम काव्यगोष्ठियों,लेखन कार्यशालाआंे के माध्यम से गढ़वाली,कुमाऊंनी में नये लेखक तैयार करना,गांव-गांव मे जाकर वहां के लोक कलाकारों को संगठित कर परंपराओं एवं संस्कृति से नयी पीढ़ी को जोड़ना हैं।