अंडुड़ी

परम्परों मा समै क साथ बदलौ कै ढ़ंग सि होंदु यांकू ताजू उदाहरण छ अंडुडी, तभी त कभी लोक परंपरानुसार मनाये जाण वाळू अंडुड़ी कु त्यार आज बटर फेस्टिबल क नौ से प्रसिद्द होणु छ, सैत सभ्भी त्यार यनि अप्ड़ू रूप बदळदा होला पर किलैकि हम साक्षी छौं त हमू तैं अंडुड़ी म होण वाळा बदलौ दिखेणा भी छन। साहित्यिक सांस्कृतिक अर आध्यात्मिक रूप से समृृद्ध उत्तरकाशी जिला मुख्यालय बिटि 26 किलोमीटर दूर भटवाड़ी ब्लॉक मुख्यालय छ, यख क नजीक रैथल अर बार्सू द्वी गौं छन जख बिटि करीब 6 किलोमीटर पैदल दूरी पर 12500 फिट की ऊँचाई पर हरी-हरी मखमली घास पर रंग बिरंगा फूलुन सज्युं दयारा बुग्याळ छ जख फरफुर्या बथौं, तबरी कुयेड़ी अर तबरी घाम ईं तस्वीर देखि यनु लगद की स्वर्ग धरती मा ही उतरी ऐगे हो, ये धरती क स्वर्ग दयारा बुग्याळ क विषय मा रैथल गौ क निवासी प्रवक्ता संस्कृत रास्ट्रपति पुरस्कृत डॉक्टर कुलानन्द रतुड़ी क अनुसार दायरा शब्द एक भाव अर्थ वाळू शब्द छ कि ऊँचा डांडों मा वास करन् वाळा देवी देवतों आन्छरी मांतरी सब्यौं कि दया दृष्ठि हमू पर बणी रौ अर्थात दायरा दया बनी रहे शब्द कु अपभ्रंश छ।
दायरा क निस धिनाड़ा नामक जगा पर रैथल अर बारसू क लोगु कि छानी छन जख मई जून मा इ लोग अपड़ा पशु लीक औंदन अर अगस्त सितम्बर तक यख रंदा, बारसु गौं क निवासी पूर्व ब्लाॅक प्रमुख अर सामाजिक कार्यकर्ता श्री जगमोहन रावत क अनुसार रैथल अर नाजिकू गौं क रैबासी जुगु-जुगु बटी खरसौ म अपड़ा धन चैन लीक यख बासु करदन अर भादौं म जनि मौसम थोड़ा ठण्डु होण लगदु फेर अपड़ा गौं बौड़ी जान्दन । चैमासा म छानी बासु कि परम्परा पूरा पहाड़ म छ किलैकी खरसौ मा उबा डांडौं मा घास पाणी खूब मिली जांदु त लैंदु(घ्यू ,दूध, दही, मख्खन) भी खूब ह्वै जांदु, पूराणा समै मा धन पसु हि संपन्नता कि प्रतीक होन्दा था जैमा जत्गा ज्यादा चैन(पालतु पशु-गाय,भैंस,भेड़,बकरी ) उ वत्गा बडू आदमी, ऊंचा इलाकों मा त विसेस करि आजीविका कु प्रमुख साधन चैन आज भि छन, छान्यों मा रण वाळा पशुपालक भादौं क मैना घर वापसी कि तयारी सुरु करि देन्दन किलैकी ऊंचा डांडौं मा मौसम ठण्डु होण लगदु अर गौं सेरों मा लवार्त मंड्वार्थ कु काम भी शुरू ह्वै जांदु त भादौं कि संग्रान्दी का दिन दयारा मा सभी पशुपालक अन्डूड़ी त्यार मनोन्दन जैकू मुख्य उद्देश्य घर वापसी का बग्त ऊंचा पाड़ू मा रण वाळा सभ्भी देवी देवता,ें स्थान देवतों, भुम्याळ देवतों, पितृ देवतों, आन्छरी मांतरी सब्यौं कु धन्यवाद आभार कर्नू छ । अर ये आभार क वास्ता अन्दुड़ी त्यौहार मनाये जांदु।
अंडुड़ी शब्द कु अर्थ छ बुलौणु या आवाह्न कर्नू कि हे देवी देवतों तुमारा प्रताप ही हम अर हमारा पसु यख यूँ डांड्यों मा यख ये विराना मा सुरक्षित छौं हमारू लैंदु बढ़ी गोरु बाखरा बढींन त हम ईं कृपा क वास्ता तुमारु आभार करदौं, आवा हमारा मोर द्वार आवा अर यथा शक्ति हमारी भेंट ईं पुड़ी प्रसाद तैं स्वीकार करा, अब हम अपड़ा गौं लौटणा छौं फिर हैंका खरसौ औला तब तलैं अपड़ी दया दृष्ठि बणै रख्यान।
अंडुड़ी त्यार पौराणिक काल बिटि मनाये जाण वाळु त्यार छ जु भादौं कि सग्रांद क दिन मनाये जांदु, पुराणा समौ मा संग्रांद सि 11 दिन पैली बिटि लोग दूध कठ््ठु करदा छा पर अज्क्याल 7 दिन पैली बिटि दूध कठ््ठु करे जांदु ये दौरान दूध तैं बिलकुल भी प्रयोग नि करदा, दूध जुठु न हो यांकू विशेष ध्यान रखे जांदू, फिर वे जम्याँ दूध कि मठ्ठा लगैक घ्यू तयार करे जांदु अर भादौं कि संग्रान्दी क दिन क दूध कि खीर बणैक स्वान्ळा पकोड़ा पुरि प्रसाद तयार करी पूजा पाठ विधि विधान क साथ पैलू हिस्सा देवतों तैं चढ़ाये जांदु अर फिर सभी लोग भोग प्रसाद खैक त्यौहार मनौन्दा
उत्तराखंड राज्य बणना क बाद लोगु कु दृष्ठिकोण भि बद्लिगे राज्य कि ज्यादा सि ज्यादा जगौं तैं, मेळा त्यारू तैं पर्यटन सि जोडिक आर्थिकी बढ़ौंण क चक्कर म कखी सरकार, कखी छळव् त कखी लोकल संस्थों न अंडुड़ी अर अंडुड़ी जना त्यारू, मेळौं म सहयोग करणु शुरू करि तबरि बिटि आर्थिक फैदा जरूर ह्वै हो पर यै चक्कर मा मेळा त्यारू कि मूल भावना पौराणिकता परंपरा अर स्वाभाविक जन सहभागिता जरूर कम ह्वैन् य सफा हि छुटिगिन।
यदि अंडुड़ि कि बात करे जावो त यु पौराणिक त्यौहार भि यांसि नि बचि सकि अर अंडुड़ि आज बटर फेस्टिबल ह्वैगे,अब यदि कैकु नौ हि बदळदिये जावो त वैकि पछाण बचलि क्या? यु विचारणीय प्रशन छ, दरसल कुछ साल बिटि एक स्थानीय संस्था,कारोबारी अर कुछ स्थानीय लोगु न अंडुड़ी तैं बटर फेस्टिबल क रूप म मनौणु सुरू करि ,यांसि दयारा कु खूब प्रचार ह्वै अखबारू,इन्टरनेट म यांकु खूब जिकर ह्वै, पर्यटक भि बढ़णा छन पर अंडुड़ी कि मूल भावना कखि पिछनै छुटणीं छ। आज अंडुड़ी मा जगा-जगौं बिटि लोग दयारा जुटदा ढोल दमौ क साथ नाच गाणा होंदा प्रतीक रूप मा परंपरा अर वांका बाद दूध दही मठ््ठा रंग पिचकार््यों न होळी खेले जांदि ,दिन भर यु आयोजन होंदु अर ब्याखनी बत सब अपड़ा-अपड़ा बाटा लगि जांदन,क्षेत्र क एक बुजु्र्ग निवासि क अनुसार दूध दही मख्खन पशुपालक अर मनुष्य क वास्ता अमृृत छन देवतौं क ये पुण्य प्रसाद तैं खत करना कि परंपरा हमारी कभि नि रै,हमारा यख त दूध कि बुन्द खतेणी भि भौत बुरू माने जांदु खैर…….नयु जमानु छ साब ।
ये आयोजन क वर्तमान स्वरूप क पिछनै भावना भौत सुन्दर छ गौं क लोग आर्थिक रूप से मजबूत होला त पलायन रूकलु गौं क रैबस्यों कु जीवन स्तर सुधरलु त राज्य कु विकास होलु पर यु काम एक दिन क हो हल्ला करि नि ह्वै सकदु बल्कि पूरा पहाड़ म गौं-गौं म साल भर परंपरागत रूप सि होण वाळा छोटा बड़ा आयाजनु तैं स्थानीय लोगु कि आय क साधन क रूप म पर्यटन से जोड़ना क वास्ता एक विस्तृृत कार्य योजना बणौणा कि जर््वत छ ताकि स्थानीय लोगु कु एक सतत्् आय कु साधन बणि सको नितर यना आयोजन बस कुछ लोगु क विकास कु साधन मात्र बणिक रै जाला ।

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