उंचि धार मति खड़ा ह्वैक जब पारी भटयाँदु थौ कि फलाणा कि न्याळी कि बरात मा ब्याखन सभ्भी मवाँ अर भोळ, दिन मा कुटम्यां जिमण खाण ऐ जाया लो…………………… नौरतां मा नौ दिन-रात पडौं का बाजा बजदा अर आर पार सारा मुल्क खबर चलि जांद कि फलाणा गौं मा नौरत्ता बैठ्यां। एक गौं कु ढोली हैंका गौ का ढोली का गैल ढोल कि ताल का माध्यम सि बात-चीत करदु थौ, पुराणा समै मा यु थौ सो
शल मीडिया, उ पारि ( भट्यैक सबुतैं गौं कि भलि बुरि खबर देण वाळु)बढा, व छुयांळ काकी ढोली दिदा इ सब था सोशल मीडिया कु माध्यम, समै बदलि अर यूं जिन्दा सोशल मीडिया का साधनों का स्थान पर आज निर्जीव साधन पर आश्रित ह्वैग्यौं हम सब, पैली आरकुट तब फेसबुक इन्सटग्राम ट्वीटर आदि इना दर्जनों सोशल साइट छन जौं मा मनखि आज अळझयूं छ, नयी पीढ़ि का वास्ता त इ साइट जीवन कु महत्वपूर्ण हिस्सा छन आज दिन रात छोटा- बड़ा ज्वान बुढया सबुकि धौणी उंदि अर आंखि मोबैल कि स्क्रीन पर तणी छन न आपस मा क्वी हेलमेल, न बात विचार, भीड़ मा भि यखुलि छ मनखि पर दस बुरै का वाद भि एक अच्छै छैंछ यूँ सोशल मीडिया साइटू कि, यूँ का माध्यम से आप क्षणभर का अपड़ी बात विचार पूरा संसार मा फैले सकदा, साथ हि विज्ञान तकनीक कु विकास अर मोबैल मा आवाज रिकार्डिंग, वीडियो कैमरा, श्रव्य दृश्य माध्यम से फोटो/वीडियो सेयर करणू आसान ह्वैगे, यांका भौत नुकसान भि छन अर फैदा भि आज दूर गौं से बड़ा-बड़ा सैरू मा होण वाळा आयोजन -अनुष्ठान कि फोटो विडियो यूँ सोशल मीडिया सैट पर लोग सेयर करना छन, आज वीडियो द्वारा बात सेयर करना कु सबसे प्रचलित माध्यम छ यू- टयूब छ, यू-ट्यूब मा आज सैकडों चैनल छन जु समाज मा होण वाळी गतिविधियों तैं दुन्या मा पौंछाणा छन, यै लिहाज से विश्लेषण करे जावो त सोशल मीडिया अर इण्टर नेट आज साहित्य संस्कृति का प्रचार -प्रसार कु सबसे सरल अर प्रभावशाली माध्यम छ।
जब बात संस्कृति कि होंदि त हमारा दिमाग मा केवल गीत अर नृत्य औंदा पर संस्कृति कु मतलब कै भि समाज कि जीवन पद्वति छ संस्कृति इन्द्रधनुस जै मा गीत,नृत्य,मेळा,त्यौहार,परंपरा,खाणु लाणु,बोळ्नु बच्याणु ,भासा, साहित्य आदि सभ्भि रंग मिल्यां छन त केवल एक विशय तैं संस्कृति बोळनु आधी बात छ।
यदि साहित्य कि बात करे जावो त श्री भीष्म कुकरेती जी मुम्बई मा रंदन अर वख बटि इण्टरनेट ब्लॉग का माध्यम से उत्तराखण्ड का साहित्य, संगीत संस्कृति पर विश्लेषणात्मक लेख अंग्रेजी,गढ़वाली आदि भासौं का लेखिक फेसबुक आदि सोषल मीडिया माध्यमों कु उपयोग करि संस्कृति तैं प्रचारित प्रसारित करना छन श्री भीष्म कुकरेती जी द्वारा आज तक सोषल मीडिया मा साहित्य/संस्कृति पर जु काम करे गई वु अद्वितीय छ । श्री मनोज इस्टवाल पूरा उत्तराखण्ड मा भ्रमण करदा अर यख कि संस्कृति का अलग-अलग रंग अपड़ा सोषल मीडिया मा द्वारा प्रस्तुत करना छन, गढ़वाळी कवि श्री जगदम्बा चमोला कि कविता मुंगर्योट….. अर श्री हरीष जुयाल ’कुटज’ कि कविता भैजि कि बरात मा…. सोषल मीडिया मा खूब प्रसिद्ध ह्वै जै से कवि तैं पछाण अर गढ़वाळी कविता का वास्ता नई पीढ़ी मा रूचि पैदा ह्वै,यना और भि कैई उदाहरण छन कलष संस्था रूद्रप्रयाग का संयोजक श्री ओम प्रकाष सेमवाल जु साहित्य संर्बधन का वास्ता निरंतर सक्रिय छन वूंका भासा आंदोलन कु सोषल मीडिया एक प्रमुख साधन छ।आज फेसबुक पर संकड़ों पेज छन जौंमा संस्कृति का अलग-अलग तत्वों से जुड़्यां लेख फोटु,विडियो भर्ंया छन लोग यूं तैं देखणा अर पसंद भि कना छन आज पूरा संसार मा नया/पुराणा लेखवार अपणी रचनौं तैं सोशल मीडिया साइट पर पोस्ट करि नौ कमौंणा छन त गितोर का वास्ता भि सोशल मीडिया बडु अच्छु माध्यम हुयूं छ। इण्टरनेट सस्तु होण से अर मोबैलु पर बढ़िया कैमरा होण से विडियो का माध्यम से अपड़ा विचार प्रस्तुत करना कु सबसे प्रचलित माध्यम यू-ट्यूब आज संस्कृति प्रचार-प्रसार को भि साधन हुयूं छ, जख हजारों चैनल छन जौंका माध्यम से लोग अपड़ि-अपड़ि सोच,बुद्धि,विवेक का अनुसार विडियो प्रस्तुत करणा छन, त हम यनु बोलि सकदा कि सोशल मीडिया संस्कृति का प्रचार – प्रसार कु भौत अच्छु माध्यम हुयूं छ पर यु एक पक्ष छ अगर हैंकु पक्ष देखे जोवो त हमारी मरदि संस्कृति तैं यु सोशल मीडिया समै से पैलि मारी दैलू यनु मैतैं लगदु, आज संस्कृति का नौ पर भौं कुछ परोसेणू छ सोशल मीडिया, साइट पर अर एकटैग लाइन सब जगौं दिखेंदि ’उत्तराखण्ड की संस्कृति को बचाने के लिए’ यु भौत ज्यादा घातक छ।नयी पीढी जु यै जमाना मा पैदा ह्वै जौन वास्तविक संस्कृति नि देखी वूं का वास्ता जु वो सोशल मीडिया पर देखणा छन वुही सत्य छ, यना मा अगर इ भ्रामक या असत्य देखला त हमारी मौलिक संस्कृति को बुरू होलू अर अचक्याल यनु होणू छ , लोग काम त करणा छन पर पूरी तैयार अर निष्ठा कि कमी का कारण संस्कृति को नुकसान ज्यादा होणू छ सोशल मीडिया भौत सरल अर सुगम माध्यम छ अपड़ी बात रखणा कु यख क्वी सेंसर भि नी त सफलता पौणक,प्रसिद्ध होणक उटपटांग रळौमिसो भि परोसेणु छ जैका दूरगामी परिणम घातक होला,पुराणी सामग्री टिपि प्रसिद्धी पौण का स्वभाव से मौलिकता अर सृजनात्मकता खतम होणी छ, यख व्यूज़ कि संख्या सफलता कि कसौटि छ अर विशयवस्तु कि मौलिकता,गम्भीरता गौण, कुल मिलैक सोषल मीडिया जख संस्कृति प्रचार प्रसार कु सरल माध्यम हुयूं छ वखि वु संस्कृति कु रूप भि बिगाड़नु छ।