-ओम बधाणी
मनखि कु स्वभाव भि अजीब छ वैमा जु होंदु वैतैं कम समझदु अर जु नि होंदु वीं तरफ भागदु, अब व धन माया हो सभ्यता संस्कृति हो या बोलि भासा,तभि त आज का समै मा पश्चिम पूरब जथैं भागणू छ अर पूरब पश्चिम कि तरफ । हम भासा, खाना पान, पैरवार अर संस्कृति सब विदेसी अपणौणा छौं अर पश्चिमी लोग हमारी सभ्यता संस्कृति तैं अपणौंणा छिन, आज हम अपणा बच्चौं पर्याबेट अंग्रेजी स्कूल मा भेजणा छौं हमारा बच्चैं तैं हिन्दी भि कठिण लगणी छ अर पश्चिम बटि लोग हमारा यख ऐक संस्कृत सिखणा छन अर सिखौंणा का वास्ता पल्ला का पैसा खर्च करणा छन, जी हां य बिल्कुल सच्ची बात छ पूरब कु रंग पश्चिम पर यनु चड़ि कि स्विटजरलैण्ड बटि भारत घुमण आयंू उर्स स्ट्रॅाबल, आशुतोष बणीगे आजीवन, ब्रहमचर्य कु व्रत ले लिनी अर केमिकल इंजीनियरिंग कु पेसा छोड़ि अफ्फु तैं वेद शास्त्र अर गीता का प्रचार- प्रसार का वास्ता समर्पित कर द्यै। उत्तराखण्ड मा कुमौं का कौसानी का बाद वैन उत्तरकाशी का दूरस्थ गौं गजोली मा निशुल्क वेद विद्यालय भि खोली द्यै जख छात्रों तैं ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद,आयुर्वेद,अष्ठांग योग,ज्योतिष अर कर्मकाण्ड कि शिक्षा निशुल्क दिये जाणी छ। ।
उत्तरकाशी जिला मुख्यालय बटि 15 किलोमीटर दूर भटवाड़ी ब्लाॅक का गजोली गौं का नजीक वेद विद्यालय मा वेद ऋचाओं को सस्वर पाठ सुणी औण जाण वाळा घड़ेक रूकि जाँदन यनु लगदु जनु वैदिक युग का कै गुरूकुल मा पौंछीगे हों द्वी कमरौं का कुड़ा का भैर चैक मा घुमंदा 72 बरस का आशुतोष का अनुसार वर्ष 1975 मा महर्षि महेश योगी ना स्विटजरलैण्ड मा एक योग शिविर कु आयोजन करि, वे शिविर मा आशुतोष कि मुलाकात महर्षि योगी से ह्वै अर बस वखि बटि वूँका मन मा भारतीय संस्कृति जाणना की इच्छा पैदा ह्वै, आशुतोष बतौंदा कि मैन महर्षि से निवेदन करि कि मैतैं अपडु शिष्य वणै द्या, अर बस हिन्दु धर्म सभ्यता संस्कृति सिखण कि यात्रा सुरू ह्वैगे, मैन महर्षि जी का सानिध्य मा वेद पुराण कर गीता कु अध्ययन करि । आशुतोष का अनुसार मैं केमिकल इंजीनियर थौ अर योग शिक्षक बणीगे स्विटजरलैण्ड मा भारतीय संस्कृति कु प्रचार करण लग्यांै, मैं 1997 मा भारत आयी अर सीधा कौसानी पौंछिग्यांे, कौसानी मा श्री अनामय न्यास वेद विद्यापीठ वेद विद्यालय कि नीव रखी,जख बांज बुरांश अर अतीष आदि डाळ्यों से घिर्यां सुन्दर रौंत्याळा वातावरण मा 100 नाळी भूमि मा वेद विद्यापीठ स्थापित करीे जख छात्रों तैं ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद,आयुर्वेद,अष्ठांग योग,ज्योतिष अर कर्मकाण्ड कि शिक्षा निशुल्क दिये जाणी छ। सुबेर साम भावतीत ध्यान कु अभ्यास कराये जांदु, आश्रम मा एक गौशाला, आयुर्वेदिक पंचक्रम चिकित्सालय भि स्थापित करे गै। वांका बाद उत्तरकाशी औणू ह्वै, मन मा थौ कि यख वेद विद्यालय खोले जावो, यै साल जुलाई या गजोली गौं मा किराया पर द्वी कमरौं कु मकान लिनि अर स्कूल शुरू करि द्यै।
आशुतोष का अनुसार सांस्कृतिक समृद्धि का बावजूद आज यख कु युवा पाश्चात्य सभ्यता कि ओर आकर्षित होणा छन, हमु तैं यु नि भुल्यँू चैंद कि दुन्याँ का सबसे पुराणा ग्रन्थ वेद जीवन जीणा की कला सिखौंदा अर मैं युवाओं तैं युवी सिखौण कि कोसिस कनू छौं,यै स्कूल खुळन का बाद कैई बच्चा, युवा संस्कृत सिखण का वास्ता रूचि लेणा छन। स्कूल मा शिक्षक डाॅ0 राधेश्याम खंडूरी जु कि स्थानीय निवासी भि छन बतौंदा कि प्रत्येक बच्चा तैं हरेक श्लोक कंठस्थ करन् पर रोजाना द्वी रूपया मिळदन, बच्चैं कि सुविधा का वास्ता विद्यालय कु समै 2 बजि बटि 5 बजि तक रख्यूं छ ताकि बच्चा सुबेर अपड़ा स्कूल पढ़ोन अर साम का समै संस्कृत सिखो, विद्यालय का वास्ता आशुतोष हर मैन 50 हजार रूपया खर्च करणा छन।
हिन्दु वेद पुराण संस्कृति अर संस्कृत का प्रचार प्रसार का यै पुण्य कार्य का वास्ता आशुतोष क्वी अनुदान नि लेन्दा बल्कि स्विटजरलैण्ड मा अपड़ि पैतृक संपति सि विद्यालय कु संचालन करणा छन।
विद्यालय का दूसरा शिक्षक पनेरू जी आशुतोष जी का व्यक्तित्व से बड़ा प्रभावित छन वूंका भारतीय संस्कृति वेद पुराण कि शिक्षा नई पीढ़ी तक पौंछौंण का महान कार्य का वास्ता ।
एक तरफ भारत मा कुछ लोग इना छन जु धर्म का नौ पर दुकानी खोलीक बैठ्यां अर लोगु कि भावना ऋ़द्धा कि आड़ मा अपड़ा गल्ला भरना छन कुकर्म करि -करि हमारी सनातन परंपरा,संस्कृति वेद पुराणों को मान धूमिल करणा छन त हंैेकि तरफ परदेशी जु न हमारा देश का छन न हमारा धर्म का सि पल्ला का रूप्या लगै हमारा वेद पुराणु कि शिक्षा नई पीढ़ी तैं देणा छन हमारी सभ्यता संस्कृति अपणौण प्रचारित प्ररसारित करणा छन, पर प्रकृति न्याय जरूर करदि बुरै कु नास भलै कि उबि दुबि जरूर होंदि ।
आभार – श्री मनोज राणा, पत्रकार।