सुन्दर शब्द रुपी मिट््टी में पवित्र भाव रुपी गंगा जल मिश्रित कर एक उत्कृष्ट साहित्य रचना/कविता रुपी देव मूर्ती तब तक पूजनीय नहीं हो सकती जब तक रचनाकार ने उसे भोग कर उसकी प्राण प्रतिष्ठा न करी हो। शब्द एवं भाव के ऐसे ही महान शिल्पी हैं गढ़रत्न,गढ़ गौरव जैसे अनेकों नामों से सुविख्यात श्री नरेन्द्र सिंह नेगी।
गढ़वाली भाषा में अनेकों विद्वान लेखक साहित्यकार गीतकार एवं कवि हुए हैं जिन्होंने गढ़वाली को सम्मान, महत्व और दिशा दी लेकिन गढ़वाली लेखन में नरेंद्र सिंह नेगी एक ऐसे रचनाकार हैं जो उनसे पूर्व, समकालीन व वर्तमान कवियों में अद्वितीय हैं,छोटे-छोटे क्षेत्रों, अलग-अलग शब्द भण्डार व शैली से संपन्न गढ़वाली को जहां ज्यादातर लेखक अपने क्षेत्र विशेष की शैली व शब्दों के मोह से अलग कर न लिख सके वहीं नेगी जी ने अपनी रचनाओं में गढ़वाल के लगभग हर क्षेत्र के शब्दों को समाहित कर समग्र लेखन करके पूरे गढ़वाल को जोड़ने का काम किया, और सभी के समझने योग्य गढ़वाली का निर्माण किया, ऐसा कहना अतिश्योक्ति न होगी। ये सोने पर सुहागा है कि नेगी जी जितने श्रेष्ठ व संवेदनशील लेखक हैं उतने ही अच्छे गायक भी, उनके गायन ने उनकी कविताओं को जन-जन के मन मस्तिष्क तक पहुँचाया और यह भी एक विशेष पहलु है कि एक सफल गायक होते हुए भी उन्होंने बाजार को अपने लेखन पर हावी नहीं होने दिया जबकि वे भी हल्के फुल्के तुकांत नाचने योग्य गीतों को गाकर धन एकत्र कर सकते थे, बल्कि वे मनोरंजक गीतों के साथ गढ़वाल के लोकरंग को समेटते हुए गंभीर सामाजिक विषयों पर निरंतर स्तरीय लेखन करते रहे, वरन्् सेकड़ों कलाकार तो बाजार के जाल में फंस कर लुप्त हो गए, जबकि नेगी जी लगभग 5 दशकों से गढ़वाली लेखन व गीत संगीत के सिरमौर हैं। इसके लिए केवल लेखन और गायन ही उतरदायी हैं ऐसा नहीं है, बल्कि उनका पहाड़ और पहाड़ी के लिए जूनून कि हद तक प्रेम व संवेदनाएं हैं, तभी तो पहाड़ व पहाड़ी समाज का शायद ही ऐसा कोई पक्ष, ऐसा कोई रंग होगा जो उनके गीतों में उदृत न हुआ हो फिर वो श्रृंगार हो, विरह हो, पर्यावरण हो, सामाजिक कुरीतियाँ हों, या फिर जन आन्दोलन, नेगी जी जन सरोकारों के लिए जनपक्ष में हर जगह खड़े नजर आते हैं ।
वर्ष 1994 जब उत्तराखंड आन्दोलन चरम पर था हर वर्ग व हर क्षेत्र के लोग आन्दोलन में सक्रीय थे उस वक्त मै भी रंगकर्म और गायन से जुड़े होने के कारण आन्दोलन में नुक्कड़ नाटकों व जनगीतों द्वारा उत्तरकाशी में जनजागरण में सक्रीय था मै और मेरे साथी गिर्दा व हिंदी के जनकवियों के जनगीतों को जनसभाओं, नुक्कड़ नाटकों व रैलियों में गाते थे, उस समय नेगी जी सूचना विभाग उत्तरकाशी में सरकारी सेवा में कार्यरत थे, सरकारी दमन भी चरम पर था ऐसे में नेगी जी ने जनसरोकारों के लिए अपनी नौकरी कि परवाह किये बगैर जाग-जाग हे उत्तराखंडी हे नरसिंह भैरों बजरंग…….,गीत लिखा मैंने नेगी जी से वह गीत सीखा और रैलियों में गाना आरम्भ किया, ये गीत जन-जन कि जुबाँ पर चढ़ गया और आन्दोलन का एक प्रमुख गीत बना जो हर व्यक्ति में जोश और उत्साह भर देता, फिर नेगी जी ने बोला भै बंधू तुमु तैं कनु उत्तराखंड चयेणु छ…..,भैजी कख जाणा छा तुम लोग……, उतराखंड कि जय न न ना उत्तरांचल कि जय…..,उठा जागा उत्तराखण्डयों सौं उठौणौं वक्त ऐगे उत्तराखण्ड का मान सम्मान बचैणौ वक्त ऐगे जैसे अनेकों गीत लिखे और इन सभी गीतों का एक ऑडियो कैसेट भी बाजार में उतारा इन गीतों से ये लाभ हुआ कि आम गढ़वाली ने जब अपनी भाषा में जनगीत सुने तो वे ज्यादा प्रभावित हुए।
मै तब नेगी जी के जन सरोकारों के प्रति समर्पण को देखकर अत्यधिक प्रभावित हुआ कि वे अपने पहाड़ और अपने समाज से कितना प्रेम करते हैं कि उनके लिए सरकारी सेवक होते हुए भी सत्ता विरोधी गीतों को लिख कर अपनी नौकरी दाव पर लगा रहे हैं वे केवल एक गायक ही नही हैं बल्कि एक संवेदनशील सामाजिक व्यक्ति हैं।
मसूरी मुज़फ्फरनगर और खटीमा कांडों से दुखी नेगी जी ने अपना गुस्सा एक गीत के माध्यम से प्रकट किया जो तत्कालीन सत्ताधीशों को सीधे संबोधित था।
तेरा जुल्मु कू हिसाब चुकौला एक दिन
लाठी गोळी कू जबाब द््यौला एक दिन
वे दिन बार औंण तक, विकास क रतब्यौंण तक
अलख जगीं राली ये उत्तराखण्ड मा
लड़ै लगीं राली ये उत्तराखण्ड मा
जब मै और साथी इस गीत को रैलियों में गाते तो सभी का खून खौल उठता हमारी माँ बहनों पर हुए अत्याचार को याद कर आँखों में आंसू भर आते। यह एक ऐसा गीत था जो भीड़ में उत्साह भर देता, तेरे जुल्मों का हिसाब हम एक दिन जरुर चुकायेंगे तू चला जितनी लाठियां गोलियां चलानी हैं पर हमारी यह लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक उत्तराखण्ड में विकास कि सुबह नहीं हो जाती
देखि याली राज तेरु लूट भ्रष्टाचार छ
उत्तराखण्ड आज अब विकास कु आधार छ
भ्रष्ट मुंडुमा ताज रालू , जबतैं गुण्डाराज रालू
अलख जगीं राली ये उत्तराखण्ड मा
लडै लगीं राली ये उत्तराखण्ड मा
ईमानदार,निश्छल,पवित्र उत्तराखण्डी जो उत्तर प्रदेश में अपनी सांस्कृतिक पहचान,अपने विकास के लिए छटपटा रहा था उसके मन की बात को कवि ने सरल व स्पष्ट शब्दों मे व्यक्त किया और कहा, तेरे भ्रष्ट लूट और अत्याचार के शासन से हटकर हम अपना उत्तराखण्ड बनायेंगे, ये स्वप्न दिखया इस गीत ने और साथ ही कहा कि भ्रष्ट लोगों के सर पर जब तक ताज रहेगा जब तक गुंडों का राज रहेगा तब तक ये अलख जगी रहेगी ये आन्दोलन यूँ ही जारी रहेगा।
तुमारी तीस ल्वे कि तीस हमारी तीस विकास की
तुमारी भूख जुल्म हमारी उत्तराखण्ड राज की
जब तलक नि मिल्दू राज बंद रालु राज काज
अलख जगीं राली ये उत्तराखण्ड मा
लडै लगीं राली ये उत्तराखण्ड मा
भोले भाले उत्तराखंडीयों पर गोलियां चलाने वाले उनका खून बहाने वाले खून के प्यासे नर पिचास शासकों के विषय में नेगी जी लिखते हैं तुम खून के प्यासे और हम विकास के तुम जुल्म के भूखे हो और हम उत्तराखण्ड राज्य के जबतक हमारा राज्य हमको नहीं मिलता हम राजकाज नहीं होने देंगे, ये मात्र एक गीत कि पंक्तियाँ नहीं बल्कि उस वक्त जन-जन के मन कि बात थी और कमोबेश आज भी है
नेगी जी के गीतों कि यह विशेषता रही कि उनके गीतों का केंद्र हमेशा पहाड़ और पहाड़ी रहे हैं विषय कुछ भी हो उपमा और प्रतीक रूप में उत्तराखण्ड का गौरवगान जरुर दीखता है तभी तो आधुनिक परिवेश में भी अपनी विरासत अपने वीर भडों कि गौरवगाथा को याद करते हुए वे कहते हैं कि
हिमालै का बीरू कि गैरत न ललकारो क्वी
हमारी हक कि मांग छ हमारू हक न मारो क्वी
अब न कैकि धौंस सौंला हक हकूक लेकि रौंला
अलख जगीं राली ये उत्तराखण्ड मा
लड़ै लगीं राली ये उत्तराखण्ड मा
हम हिमालय के वीर भडों की गैरत को मत ललकारो हम माधो सिंह भण्डारी और काफ्फु चैहान के वंशज् हैं किसी कि धौंस सहन नहीं करते और हम अपना हक अपना उत्तराखण्ड राज्य लेकर रहेंगे
विधि विधान की लड़ै या भीख नी अधिकार छ
गांधी कू अहिंसा सत्यग्रह हमारू हत्यार छ
भूखा रौंला तीसा रौंला राज जब तलक नि पौंला
अलख जगीं राली ये उत्तराखण्ड मा
लडै लगीं राली ये उत्तराखण्ड मा
आन्दोलन और लड़ाई कि बात करते हुए भी कवि ये नहीं भूलते कि हम गांधी के देश के लोग हैं अहिंसा हमारा धर्म है हम कोई भीख नहीं मांग रहे हैं बल्कि अपना अधिकार मांग रहे हैं हम लड़ेंगे पर कानून के दायरे मे अहिंसात्मक लड़ाई लड़ेंगे अहिंसा हमारा हथियार है हम भूखे प्यासे रहेंगे पर जब तक हमें हमारा उत्तराखंड राज्य नही मिलता तब तक लड़ाई जारी रहेगी।
उत्तराखण्डी जन-जन के त्याग बलिदान से अपना राज्य तो हमें मिल गया पर दुर्भाग्य देखिये राज्य बदल गया सत्ताधीश बदल गये पर परिस्थितियाँ नहीं और कभी गैरौं के विरूद्ध गीत लिखने वाले नेगी जी फिर खड़े हो गये उत्तराखण्डी जन मानस के पक्ष में। राज्य में पनप रहे दुर्विक्ष के खिलाफ और उनके गीतों ने सत्ता तन्त्र हिला दिया। शायद इसीलिए राज्य बनने के 16 वर्षों बाद भी नेगी जी को जन-जन से अपार स्नेह प्रेम व सम्मान मिला पर सत्ता से दिखावा, तभी तो गढ़वाली लोक भाषा,साहित्य,संस्कृति के लिए अपना पूरा जीवन खपाने वाले नेगी जी का नाम किसी भी राजकीय सम्मान के लिए संस्तुत तक नहीं किया गया, पर वे एक कर्मयोगी की भांति 69 वर्ष की उम्र मे भी लगे हैं हमारी सेवा में।