नौनि त विराणू धन होंदि वींतैं सैंति पाळिक एक दिन विदा त करणू हि पड़दु, अर मैति वींका सुख से सुखि ह्वैक वींका मान सम्मान, पद प्रतिष्ठा, सुख समृद्धि से तृप्ति कु अनुभव करदन,अपड़ु गौरव समझदन, पर नौनि सि दुरू रण कि टीस त मन म रैंदि हि छ। गंगा कु छ ? व जु साक्यों बिटि बिना जाति धर्म कु भेद करि करोड़ों करोड़ लोगु तैं मुक्ति देणी छ ? जैंका यश गान मनखि हि न वेद पुराण अर देवता भि गांदन,ज्व प्रेम अर पवित्रता कि प्रतीक छ? ज्व जुगु-जुगान्तर बटि करोड़ों लोगु कि जीवन रेखा बणीं छ ? जी हां, वैछ गंगा, पर दुन्या क वास्ता। वंूका वास्ता क्य छ गंगा जु गंगा क मैति छन ? जी हां गंगा क मैत्यों क वास्ता गंगा वूंकु मान सम्मान गौरव छ, वूंकि पछाण छ। अर इ छन गंगोत्रि बटि मुखवा, धराळी,टकनौर, बाड़ाहाट अर उत्तरकाशी जिला कि पूरि गंगा घाटि क रैबासी, जु गंगा कि पुजा माँ क रूप म करदन,अर प्रेम ध्याणी क रूप म। यूंका वास्ता गंगा सिर्फ पित्र तर्पण, स्नान आचमन अर अपड़ा जन्म जन्मान्तर क पाप मुक्ति कु साधन मात्र नि छ बल्कि गंगा यँूकि संस्कृति,सभ्यता कु आधार छ,यख लोक समाज म बार त्यौहार थौळा कौथीग पुजा पाठ,गीत नृत्य, बिना गंगा जी क पूरा नि होंदा । यख गंगा जी सदा मनखि क साथ छन,एक ध्याणी कि चार मनखि वींकि याद करणु, वींकु हिस्सु रखणु कभि नि भुळ्दु, गंगा जी यँूतैं धार्मिक,आध्यात्मिक,आर्थिक सामाजिक हर रूप से महत्वपूर्ण छ ।
धार्मिक,आध्यात्मिक रूप म पुराणौं क अनुसार राजा भगीरथ न अपड़ा पित्रों क उद्धार क वास्ता करोड़ों बर्षु तलैं अखण्ड तप करि तब माँ गंगा धरति मा आई, गंगा जी का प्रचण्ड वेग सि धरति तैं बचैणक शिवजिन गंगा तैं अपड़ी जटा मा समै दिनि अर एक धारा सृष्ठि कल्याण क वास्ता पृथि पर छोड़ि ।
जय हो धरमी राजा भगीरथ महान,तेरा प्रताप धरतिन पाई यु बरदान
शिव जटा न छुटि पवेत्र गंगा कि धार,सगर वंशी तरिन तृप्त ह्वै संसार
गंगा जी जैं जगा पर धरति म उतरि वु स्थान गंगोत्रि नौं से जाणे जांदु अर आज वख गंगा जी कु भव्य अर विसाल मन्दिर छ
कैल देवदार बिच ऊँचा कांठौं क निस,तेरो पावन मंदिर माँ पूरब दिस
गौरि बिष्णू कुंड सामणि रूद्र कैलास,धरती मा दिखेंद स्वर्ग कु फैलास
जख गंगा पंचैत मा माता लक्ष्मी जी,सरसुती,जमुना जी,जान्हवी,गणेश जी, माँ दुर्गा व अन्नपूर्णा जी अर राजा भगीरथ क गैल माँ गंगा जी शीर्ष आसण पर विराजमान छन
पवित्र गंगोत्री धाम विराजीं गंगा माँ,जमुना लक्ष्मी जी गैल सरसुती अन्नपुर्णा
भगिरथ जान्हवी गणेश दुर्गा माँ, शीर्ष आसण माँ कु गंगा पंचैत मा
हर साल अपड़ा छः मैना क शीतकालीन प्रवास अक्षय तृतीया क पैला दिन गंगा क मैत मुखवा गौं बिटि डोलि मा विराजी माँ गंगा अपड़ा मैति पुज्यारी सेमवाळ पंडितु,पूरी गंगा घाटि क मैत्यों,अर देसु-देसु बटि आयां भक्तु क गैल रणसिंगा, ढोल दमौं कि टंकार अर सेना क बैण्ड कि धुन पर गंगा माँ क जयकारों क साथ गंगोत्री क वास्ता चळदि, वै दिन भैरौं घाटि क भैरव मन्दिर मा बासा रैक अक्षय तृतीया क दिन गंगोत्री पौंछदि जख पूरा विधि विधान पुजा पाठ क साथ माँ गंगा गंगोत्री मन्दिर मा विराजदि अर अगला छः मैना क वास्ता गंगोत्री मन्दिर क कपाट भग्तु क दर्शन क वास्ता खुलि जांदन।
मुखवा बिटि गंगा माँ कि डोलि झलूस चळ्द, अक्षय तृतीया कु गंगोत्री पट खुळ्द
छामर्या डाळि चड़ौंदा गांदा जस गुणगान,मुखवा का सेमवाळ तेरी पूजा लांदान
गंगा सप्तमी तक माँ गंगा क निर्वाण दर्शन कि परम्परा छ, गंगा सप्तमी भगवती गंगा कु जन्म दिन होंदु त यै दिन कु विशेष महत्व छ,यै दिन विशेष पुजा क बाद गंगा जी कि मूर्ति पर सोना कु मुकुट चढ़ाये जांदु । गंगा सप्तमी क अलावा गंगा दशहरा कु हिन्दु धर्म मा विशेष महत्व छ, यै दिन माँ भगवती गंगा धरति पर उतरि छै । य मान्यता छ कि यै दिन गंगा स्नान कु विशेष फल मिलदु। अगला छः मैनों तक माँ गंगा क दरसनु क वास्ता देस बिदेसु क लाखों भग्तु कु औणु जाणु गंगोत्री मा लग्यूँ रंदु, य परम्परा जुगु बिटि चळ्नी छ।
देसु क देस्वाळी गंगा अस्नान लेंदा,पुजा पाठ ध्यान पितृ पिण्ड दान देंदा
तु माँ त्रास मिटौंदि भव सागर तरौंदि,जन्मु का पाप धोन्दी देंदि मोक्ष कु दान
ह्यूंद क दिनु माँ गंगा फिर अपड़ा मैत मुखवा गौं म विराजमान ह्वै जांदि, गंगोत्री मन्दिर क कपाट बन्द ह्वै जांदन अर मुखवा मा हि अगला छः मैनौं गंगाजी कि पुजा होंदि।
आर्थिक, सामाजिक दृष्ठि से गंगा जी कु महत्व पहाड़ हो चाहे मैदान संगता विशेष छ, पर पहाड़ क ग्रह ये मामला म थोड़ा करड़ा छन, एक ध्याणी कि चार गंगा जी अपड़ा मैत बिटि दोण दैजु कण्डा क रूप म उपजौ माटु खाद पाणी लाखड़ा उंदु मैदानु म लीक जाणी छ मैदान फळना फुळना छन, गंगा जी गौमुख बिटि गंगा सागर तक लगभग 2525 किलोमीटर कि यात्रा करदि अर लगभग 10 लाख वर्ग कि0मी0 क्षेत्रफल क अति विशाल उपजाऊ मैदान कि रचना करदि,गंगा विश्व कि सबसि जादा उपजाऊ अर घणि आवादि सि गुजरदि अर वूंकि पाणि कि जरूरत भि पूरि करदि, पहाड़ु म गंगाजी कु वेग,पाणी क साथ बाळौं बगिक औणु,चैमासा मा गंगा जी कु अति विकराळ अर मट्याळु ह्वै जाण क कारण ईंकु पाणी पेणक भि पम्प क माध्यम सि गौं-गौं तक पौंछौंणु संभव नि छ अर बाड़ कु खतरा अलग, हाल फिलहाल मा 1978,2012,अर 2013 कि बाड़ उदाहरण छ कि गंगा जी मा आईं बाड़ से पूरि गंगा घाटि मा कतना तबाहि मचि थै,ईं दृष्ठि से हम बस गंगा क मैति होण कु गौरव हि करि सकदौं, लेकिन वर्तमान मा पर्यटन क दृष्ठिकोण से गंगा जी ये क्षेत्र कि आर्थिकी कि रीढ भि बणी छ य बात बिल्कुल सत्य छ, यात्राकाल म छः मैनों लाखों यात्री उत्तरकाशी ह्वैक गंगोत्राी पौंछदन जां सि पंडा पुरोहित,होटल व्यवसायी,छोटा बड़ा व्यापारी,परिवहन सि जुड़्यां लोग आदि सभ्भि आर्थिक रूप सि समृ़़द्ध होणा छन।
विकास कु आधार तेरि पवेत्र जल धार,तेरा प्रताप हरू भरू देस घर गौं गुठ्यार
स्वार्थी लालची मनखी दुर्गुणू कू भण्डार,क्षमा करि दया रखि त्वी छै मुक्ति कु द्वार
मनखि एक लालची, स्वार्थी, अवगुणी प्राणी छ, जैका प्रताप वु फळदु फुळदु वैकि जड़्यों म हि मठ्ठा भि डाळदु, यैहि दशा आज माँ गंगा कि भि होणी छ, भारत कि 37 प्रतिशत आबादी कि प्राण आधार,भारत कि कुल सींचित भूमि का 47 प्रतिशत खेतु तैं ज्यूंदि रखण वाळी अर हमारा वास्ता कैई बड़ा-बड़ा डामु क डाम सैण वाळी माँ गंगा कि हत्या करण पर आज हम हि तुल्यां छौं, गौमुख बिटि गंगा सागर तक गंगा गन्दा नाळा म बदळ्नी छ,अर मनखि ईं माँ क नौ पर भि कमै करणू छ, तभि त गंगा सफाई क नौं पर करोड़ों रूप्यों कि छांटि बांटि लगणी छन, जैं देवि कि पुजा हम माँ रूप मा करदौं, जैंतैं हम ध्याणी मानि लाड करदौं आज व कष्ट मा छ, तभित व कभि कभार गुस्सा भि ह्वै जांदि अर हमारा तमाम अत्यचारू क बाद भि मरन सि पैलि द्वी बुंद गंगा जल कि हमारि कामना पूरि करणक प्रस्तुत भि ह्वै जांदि, यनु केवल गंगा माँ हि कर सकदि अर यदि हम अपड़ी ईं माँ कु यनि तिस्कार करणा रौंला,व्यापार कौंला त हमु पर असकार लगणु हि छ।
गंगा सि जुड़्यां औखाणा
संकलन — ओम बधाणी
1-गंगा म क्यांकु घाटु , पेणक गंगा जल खाणक आटु ।
2-सौलै क्य लगदि गंगा पर ।
3-गंगा माँ क जौ ।
4-गाड मिलै कि गंगा ।
5-गंगा दुरू पर फाळ नजिकु ।
6-गंगा गै त गंगा दास,जमुना गै त जमुना दास ।
7-अपणी गंगा क्वी उब्बो नह्यो उन्दो नह्यो ।
8-जद कद गंगा सौरौं पार ।
9-दिन डुबि चलि धार,चला गंगा पार ।
10-बगदि गंगा हात धोणु ।
11-मेरि गंगा होलि त मैमु आलि ।
12-गंगा वारौ कोड़ी,गंगा पारा कोड़ि तरकू ।
13-मुफ्त कि गंगा हराम कु गोता ।
14-बरखु गंगाड़ ता सोना संगाड़ ,अबरखु ता खारै पिंगाड़ ।
15-मन चंगा त आंगण गंगा ।
16-गाड गदरू गंगा नि ह्वै सकदि ।
17-दैव बसदु गंगा पार,पर ध्यान वैको आर-पार ।
18-गंगा क्य नी दौं दगड़ा ल्यौंदि,तौ भि अपड़ु सत नि खोंदि ।
19-गंगा गोटणि अर मन गोटणु यक्कसर ।
20-झुठ्ठि लगाणी गंगा पार जु रै जावो दिन चार ।
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