उत्तराखंड क विषय म एक बात गजब कि छ कि जत्गा औक्खु यख कु जीवन छ उत्गा हि हंैसी उलार यख का रैबास्युं की जिकुडिय¨ं म छ, इ हैन्सी उलार कु क्वी म©का नि छ¨ड़दा, सैत अपड़ा तरासु तैं थ¨ड़ी देर बिसरण का वास्ता,तभि त क्वी भि पर्व ह¨ वैतैं पूरी हंसी खुसी नाच गाणा का साथ अर मेळा थौळौं क रूप म सब्बिय¨ं क गैल मिलि जुलि मनाये जांदू, यख दुखु कि कमी नि छन जेठ कु चड़-चडू घाम, हाड मांस गळ©ंण वाळुु पूष, अर बग©ण्या च©मासु, यना तरासु मा जीवन ठेळ्न वाळु यख कु मन्खि भितर बिटि भ©त कुंग्ळु छ, सैत वैकु यु मिजाज वैकि दुःख विपद¨ं कु पुरक छ, अपड़ा डाळा बुर्दा चखुला प¨थला,ग©ं गुठ्यार,धन चैन,लती कपड़ी,ब¨ली भासा अर अपड़ी परम्परा सब्य¨ं दगड़ा यख का रैबास्युं तैं अटूट प्रेम छ युई कारण छ कि हमारू खाणु पैर्णु, गीत, गाजा बाजा अर ज्युणा कि संस्कृति म भ©त गैरै अर अपणुपन छ, पर यख क लोकगीतु म व पिड़ा सपस्ठ दिखेंदि, यख एक भ©त पुराणु ल¨क गीत छ
कैस¨ बढि़या रिवाज हमारा मुल्का
बारामैन¨ं क बारा ह¨ला त्य©हार हमारा मुल्का
कैस¨ बढि़या रिवाज हमारा मुल्का
य बिल्कुल सच्ची बात छ बारामास क बार त्यार यखा कि संस्कृति साक्य¨ं पुराणी छ, जु आदि काल बिटी पळ्णी फुळणी रै पर अब ठण्डु-ठण्डु यूँ पुराणी परंपर¨ं म बदल¨ भी खूब दिखेणा छन, यख मै कुछ पर्व अर वे अवसर पर ह¨ण वाळा त्यारू कि चर्चा कर्णु छौं
सेलकु
सेलकु मतबल सेलु $कु ? जब ढ¨ल की ताल पर पुरु ग©ं रान्सु लगान्दु ह¨ तब निंद कै आली ? सेलकु गंगा घाटी क टकन©र क्षेत्र म मनाये जाण वाळुु प्रमुख पर्व छ निचला टकन©र क्षेत्र म सेलकु 21 गति असाड़ अर मुखवा(उपला टकन©र)म भादौं मैना कि सेक क दिन (लगभग 15 सितम्बर क नजीक)मनाये जांदु। माँ गंगा क तीर्थ पुर¨हित अर मैति मुखवा क रैबासी पंडित उमा रमण सेमवाळ जी सेलकु क इतिहास क बारा म बत¨ंदा कि सेलकु कु इतिहास गोरख्याणी सि पैली कु छ सेलकु म नागणी बाजार कु भौत जिकर औंदु। दरअसल मुखवा ग©ं क ऐन्च नागणी तप्पड़ छ जख भ©त बड़ु बजार लगदु छौ वख तिब्बत, हिमांचल, रवैं अर टिहरी क भिलंग क्षेत्र बिटि व्यापार ह¨ंदु छौ यु बजार मई जून बिटि सितम्बर मैना क आखिर तक चळ्दु छौ त सितम्बर म जनि बजार खतम होंदु थौ तब सब्बि व्योपारी मिलिक रात भर ओला(भैला)जगैक नाचदा गांदा था ये म©का पर चिणा क आटा क द्यूड़ा जौं तैं कै जगा भी ब¨ले जांदु अर स्थानीय उत्पाद आलु कु झ¨ळ कु भ¨ज ह¨ंदु छौ धीरा-धीरा बजार त खतम ह्वैगी पर व्योपारीयूंन अपड़ा-अपड़ा गौं म सेलकु मनौंणु सुरू करी अर धीरा-धीरा य परम्परा बणीगे,अब धीरा-धीरा यैका साथ धर्म भि जुडि़गे अर स्थानीय समेसुर देवता की पूजा कु विधान भि सेलकु क गैल जुडि़गे। पैली कई दिनु तक चळ्न वाळु सेलकु ठण्डु-ठण्डु द्वी दिन कु ह¨ण लगी।
पैलिकि रात ल¨ग सेलकु मन©ंण अपड़ा मैत आयीं ध्याण्यों अर मैमानु कु स्वागत द्यूड़ा अर झ¨ळ क सुभ भ¨ज का बाद रात कु ओला जगौंदन् अर रान्सु नृत्य क साथ पूरी रात जागरण करदन्,दूसरा दिन होंदि समेसुर देवता की पूजा, दूसरा दिन कु उत्सव भी सेलकु म बड़ू र¨मांचक ह¨ंदु, सुबेर नह्यै धुयैक मणस्यारू/मन्यारा(पुरुष) उबा दुरू डांड्य¨ं बिटि समेसुर देवता तैं भेंट चढौंण क वास्ता ब्रह्मकमल,नीली पीली जयाण,ताज,लेसर,थुनेर,रई जना कई किसम का फूल लीक औंदन् जौंकि खुसबौ सि पुरु इलाकु सुगन्धित अर पवित्र ह्वै जांदु, फिर देव ड¨ली कु नाच अर वांका बाद लगदु समेसुर कु डांगर्य आसण । दरअसल उत्तरकाशी क रवाईं अर टकन©र क्षेत्र म समेसुर देवता की बड़ी महत्ता छ समेसुर देवता यख क इस्ट देवता छन अर रक्षक भी। समेसुर देवता 21गते असाड़ बिटि 20गते पूष तक(जाख जखोल,ढाठमीर,ओसलागंगाड़,धड़्याचैंर्या-खरसाली,रैथल,भंगेली,झाला,मुखवा,सैंज,सौरा,गोरसाली,पाला,धराली,नाल्ड कठूड़ सभ्भि थातियों म) अपड़ा पूरा क्षेत्र कु भ्रमण करदा अर अपड़ा भक्तु तैं सुख संपदा कु असीरवाद देंदा डांगर्या आसण देवता कि ईं यात्रा कु ही प्रतीक छ, ईं क्रिया मा देवता ड¨ली लीक पैना(धारदार)डांगर¨ं पर चळ्दु अर भग्तु क न्यूरा(न्यूतु)ब¨ळ्दु,हजार¨ं ल¨गु कि भीड़ म देवता ल¨गु तैं बुलै-बुलैक संका कु समाधान करदु अर आशीर्वाद देन्दु डांगर्य आसण सि पैली देवता तैं फूल चढाये जांदन् अर फिर आसण क द©रान ध्याणी अपड़ी मन©ती पौन्दिन् अर अंत म देवता कु आसीरवाद लीक सभ्भि विदा लेन्दा। आज कि बात करे जावो त अब सब्बि त्यार औपचारिकता ह्वैगि, लोग कठ्ठा त होणा छन पर वु भावनात्मक जुड़ाव निछ,किलै कि गौं सि जुड़ाव निछ,रणु खाणु भैर कु ह्वैगे,मनोरंजन क साधन छक्कि ह्वैगिन कै-कै दिनु तक चळ्न वाळा मेळा थौळा कुछ घण्टौं म खतम ह्वै जाणा छन,गौं क रैबासी त त्यार म भागीदारी करदन् पर भैर रण वाळौं तैं य अचम्भा कि बात जादा होंदि,सि अपड़ा स्र्माटफोनु पर फोटु अर बीड्यो बणौण म ही व्यस्त रंदा,त जुड़ाव कखन होणु।अर दुर्भाग्य सि यई बात सेलकु क गैल भि होणी छ।
डांडू क्या फूल फुलाला -डांडू क्या फूल फुलाला
डांडू फूलला जयांण -डांडु जयांण फुलाला
यु फूला कै चढालो यु फुला कै सोभलो
यु फूला देवतों सोभा-सोभालो समेसुर
चला भुल्यों मैत जौला समेसुर भेंटीक औला
हारदूध
हारदूध कु त्यार 20 गते स©ंण कु मनाये जांदु ये पर्व तैं सारदूध अर कखी बिसात भी ब¨ले जांदु हारदूध का विषय म उमा रमण सेमवाल जी बत¨ंदा कि ये पर्व म नाग देवता कि पूजा क वास्ता दूध कु हार बणाये जांदु ये वास्ता यू त्यार हारदूध ब¨ले जांदु बाड़ाहाट क्षेत्र म ”स“ अक्षर तैं कई जगा ”ह” ब¨ले जांदु त अब पड़्या लिख्यां ल¨ग हारदूध तैं सारदूध भि ब¨ळ्दा ,यु त्य©हार बिसात क नाम सि भी जाणे जांदु किलैकि यु 20 गते स©ंण कु ह¨ंदु त बीस गति कारण यु बिसात ह्वैगि सैत ईं वजह सि, ये अवसर पर लग्ण वाळु एक पुराणु ल¨क गीत छ
मेरा मैता देसा कु नागेलु आयी
बीस गति स©ंण नागेलु आयी
हारदूध का त्यार नागेलु आयी
दूध चड़ै देणु नागेलु आयी
बासुकी कु जायु नागेलु आयी
बीस गति स©ंण नागेलु आयी
ये पर्व पर बड़ी सुन्दर परम्परा छन, ये दिन जै भी घर म नयी ब्याईं ग©ड़ी ह¨न्दी वीन्कू पैलू सुचू दूध पितृ देवतों तैं चढौण क बाद नाग देवता क वास्ता रखे जांदु दूध कु मख्खन अर घ्यू बणैक देवता तैं चढदु। यैमा शर्त य ह¨न्दी की जनानी(स्त्री) ह¨ य मणस्यारू(पुरुष) इ नह्यै धुयै गौंत अर गंगा जल पीक तैं शुद्ध ह्वैक दूध गाडला,गौड़ी पर क्वी अपवित्र जनानी(रजस्वला स्त्री)हात नि लगै सकदी,सारा गौं क ल¨ग मंदिर म ढ¨ल दमौं क साथ कठ्ठा ह्वैक द्यू धूपाणु अर पूजा पीठैं करी पैलू दूध नाग देवता तैं चढ़¨दन् फिर बच्यां दूध कि खीर बणैक प्रसाद क रूप म सभी ग्रहण करदा
असल म पूरा पहाड़ म नाग पूजा कि बड़ी पुराणी परम्परा छ अर विशेष करी स©ंण भादौं(च©मास) म, उमा रमण सेमवाल जी कु मानणु छ कि किलैकि हम ल¨ग शैव सम्प्रदाय क ल¨ग छौं हम शिव क पुजारी छौं अर भगवान शिव विनास अर प्रलय क देवता छन, अर ज्यादा आपदा च©मास म ही औंदिन् त भगवान शिव अर वूंका गळा कु हार बासुकी नाग अर न© नागु कि पूजा यख ह¨न्दी ताकि भगवान शिव प्रसन्न ह¨न अर दुःख विपद¨ं सि हमारी रक्षा कर¨न। वैज्ञानिक दृष्टि सि माने जांदु कि वर्षाकाल म नाग, नागल¨क छ¨ड़ी धरती पर ऐ जान्दन अर यै काल म उत्पन्न ह¨ण वाळा किटाणु कु भक्षण करी हमारी रक्षा करदन् यै कारण नागु कि पूजा ह¨न्दी, जु भी कारण ह¨ पर इ परम्परा छन भौत सुन्दर, यदि आज कि बात करे जाओ त अब त बस परम्पराओं तंै ठेळ्न वाळी बात ज्यदा छ किलै कि पलायन क कारण गौं म भौत कम ल¨ग बच्यां छ, अर ई लोग जरुर यूं परम्पराओं तैं जतगा संभव छ निभौणा छन ।
अन्ड¨तरा(अन्डोत्रा)
भाद¨ं मैना कि संगरांद जैं तैं उजयाळी संगरांद अर घी संगरांद भी ब¨ले जांदु वे दिन अन्ड¨त्रा मनौण की भौत पुराणी परम्परा गंगा घाटी म छ ये दिन नाग देवता मंदिर बीटी भैर औन्दन(देवता कि मूर्ति) अर पंडित जी क हातु दूध सि मूर्ति कि पुजा स्नान कराये जान्दु अर तब जन्ता नीली पीली जयांण अर द्यू धुपाणु करी देवता की पूजा करदी यै दिन जनानी आटा क न© नाग बणौंदिन् अर वूंकी पूजा करिक नाग देवता क मंदिर म चड़ाये जांदन्। नाग देवता क मन्दिर म जनानी नि जै सकदी पर नाग ऊंका ही पवित्र हातू सि बणाये जान्दन् फिर सुरु ह¨ंदु रान्सु अर मन्डाण एक तरफ मणस्यारू अर एक तरफ जनानी अर ज्वान बुड्या सभी
धूप करा धुन्यारू नागेलु आयी
सेती घ¨ड़ी अस्वारी नागेलु आयी
मै इनु जाणदु नागेलु आयी
गौन्त छिड़ी देन्तु नागेलु आयी
मकरैण,पंचमी, फुलदेई,बिखोत, बैसाख क थौळा, घ¨ल्ड्या संगरांद, उज्याळी संगरांद(तेख्टु), राखड़ी, नौरत्ता मण्डाण, पूस क मैना दुबड़ी आदि, पूरा उत्तराखंड म यना अनगिनत पर्वु कि जुगु-जुगु पुराणी परम्परा छन चैत म फुलदेई सि लीक तैं फागुण तक, एक कभी न खतम ह¨ण वाळु सिल-सिला छ,पापड़ी संगरांद,घेन्ज्या संगरांद,इना कई छ¨टा बड़ा पर्व छन अर यूं पर्वु कु उद्देश्य छ हमुतैं अपड़ी जड्य¨ं सि ज¨ड़ी रखणु अपड़ा समाज अपड़ा पर्यावरण अर पूरा इक¨ सिस्टम क गैल ताल मेल बिठै जीवन ज्यूणु पर ठण्डु-ठण्डु जन जनु समाज शिक्षित ह¨णु छ वैकी स¨च भ©तिकवादी ह¨णी छ, वु यूं परंपराओं तैं तर्क कि कसौटि पर कसणु छ, ग्ल¨बलाईजेसन क ये युग म हम अपड़ी परम्पराओं तैं तुच्छ मानणा छा,ैं पुराणी पीड़ी क लोग नयी पीड़ी तैं अपड़ी ब¨ली भासा अर यूं पर्वु तैं हस्तांतरित नि करणा छन,अर एक सबसी बड़ू कारण छ पलायन, इ कुछ कारण छन जौंकि वजै सि धीरा-धीरा अप्ड़ू रूप बदळ्दी इ परम्परा एक दिन खतम भी ह्वै जाओ त अचंभा वाळी क्वी बात नि ह¨ली, अर कुछ त खतम ह्वै भि गिन।
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