साक्यों बिटी सिंज्यूं पाळ्यों पोस्यूं सभ्यता संस्कृति कु झपन्याळू डाळूू विकास क औडाळा मा जड़ सि कनु उखड़ि जांदू , मिटि जांर्दु इं सच्चै कि तस्वीर छ टीरि डाम। उज्याळा भविष्य क वास्ता एक ज्यूंदि सभ्यता एक विसाल सांस्कृतिक विरासत मनखी का बणायंा पाणी क समोदर मा कनी डुबिगे छै, कना डुबिग्या छा गौं क गौं घनघोर अंध्यारा मा कना समैग्या था सि चैक पाणी मा अर वंूका गैल ढोल-दमौ क बोल, मण्डाण, दानौं कि भुक्कि पेणु अर लाड, सांैजौड़्यों कु गळा भेंटेणू छोटा-छोटा नौना नौन्यूं क पिम्परी बाजा, ज्वानु कु चरखि खेलणू, स्वागीणू कु च्यूड़ि बिन्दी मोल्योणू अर बडि दाद्यों कु बुलाक उठैक जलेबि पकोड़ि खाणू , आह…..ऽऽऽऽऽऽऽ क्य सज होंदू छौ, वबरि बैसाख का मेला-थौळौं मा।
पूरा उत्तराखंड मा बैसाख का मेला-थौळू कि साक्यों पुराणी परम्परा छ पर टीरि डाम क बण्न सि टीरि बिटि चिन्याळी सौड़ अर घणसाळी क्षेत्र तक का गौं डुबण सि वख कि बैसाख क मेला-थौळौं कि परंपरा भि डुबिगे, हां पर कुछ-कुछ जगौं म वांका निसान अजौं भि छैं छन। इना कुछ मेळों कि बात आज यख करणू छौं।
टीरि बिटि उत्तरकाशी तक बैसाख म खूब मेळा आज भि लगदा पर द्वी प्रसिद्ध मेळा छाम कू मेळू अर नगुण कु मेळू आज समळौण्या हवैग्या किलै कि तर सौड़ अर नगुण सौड़ टीरि डाम क पाणि म डुबिग्या, जौं जगौं पर ई थौळा 01 गते बैसाख अर द्वी गति बैसाख कु लगदा छा। टीरि बिटि 30 किमी0 उत्तरकाशी कि तरफ एक छोट्टू सि बाजार छौ छाम अर वंाका बिडवाळ गंगा किनारा तरसौड़ नौ कु तप्पड़ वख म गंगा पर एक पुळ थौ ,जु पूरी गमरि पट्टि तैं छाम सि जोड़दू छौ। यै बजै सि छाम काफि उपयोगि बजार थौ बैसाख संग्रांदि(01गते बैसाख ) क दिन यख जुड़दू छौ छाम कु मेळू जैमा सैकड़ौं गौं क लोग कठ्ठा होंदा था क्या बुड्या क्य ज्वान। भौत टैम पैलि बिटि छाम क मेळा कि तैयारी सुरू ह्वै जांदि थै। चैंळू तैं भिजैक अर पिसिक वांकि पापड़ि उलाळ्यै जांदि थै, गैल म स्वांळा, उड़द की दाळी का पकौड़ा, बेल्डी रोटी, भरंया स्वांळा यै दिन पर खास बंणदा था। गौं-गौं बिटि थौळेरू की टोली जब धारू-धारू बिटि छुटदि थै त इनु लगदू थौ कि बसंत रंग बिरंगा फूल बाट हो लग्यां।
आज कि चार सम्पर्क क साधन नि होण सि पैलि यूं मेळों कु बडु महत्व थौ। कैका वास्ता इ मेळा मनोरंजन कु साधन था, कैका वास्ता लत्ति अर सिंगार कु सामान मुल्यौण कु मौका, त कैका वास्ता मेल मुलाकात अर खुद बेळमौण कु अवसर। पहाड़ कि बात करे जावों त यख बैसाख का मेळों कि परम्परा कबरि बिटि सुरू हवै यांकू क्वी इतिहास नि मिळ्द पर य परम्परा सैत यख कि भौगोलिक परिस्थिति क कारण बण्दा-बण्दा बणिगे हा,े किलैकि यख पैलि मौसम भौत ठण्डू हौंदू छौ अर बैसाख म मौसम थोड़ा गरम ह्वै जांदू थौ, नयी फसल पकण कु शुभ सुंदर समौ होंदु थौ त लोग एक हंैका तै मिलण क वास्ता कठ्ठा होंदा अर युवी मेल मिलाप फिर मेळों क रूप म ऐगे हो। हाड मांस गळौण वाळी ठण्ड क बाद गरम कपडौं सि मुक्ति अर सजण धजण कु एक अवसर, पहाड़ी समाज म जनानियों कु जीवन आज भि भौत कठिन छ त पुराणा समै म क्य रे होलू? यैकि कल्पना आसान छ। बैसाख क मेळों कु महत्व बेटमाण्यों (विवाहित स्त्री) क वास्ता विशेष छौ किलैकि पहाड़ म मणस्यारू (पुरूष) त कै न कै कारण सि जनु ब्यौ क्वी सुभ कारिज य अन्य कै भि कारण सि दूसरा गौं सि जुडयां रंदा छा पर जनानि एक हि गौं मा कैद ह्वैक रे जांदि छै, त यूमां यु बिसेस मौका होंदु छौ अपड़ी दगड़्यौं, भै-बंधु, दिदि, भुल्यौं सि मिळन कु किलै कि ब्यौ भि भौत दूरू-2 नि होंदा था। त मां बैणी यूं थौळों म पूरा उलार सि सम्मिलित्त होंदी थै। सि अपड़ि खुद मिटौंदि, जलेबी, पकोड़ी खांदि लत्ती कपड़ी मुल्यौंदि दिन भर दगड़्यौं म खूब छवीं बथ लगौंदि अर पूरा बरस क वास्ता मिठ्ठि समळौण लीक घर ऐ जांदि।
आज समै बदळिगे त मेळों कु रूप भि बदळिगे, पहाड़ू म लोग हि नि छन बच्यां त मेळों न क्या बचण, पर आज भि कुछ लोग यूं परम्परों तैं ठेळना छन जनु छाम कु मेळु आज नया बाजार कण्डी सौड़ म लगदु बस नाम मात्र नगुण कु थौळु पीपळ मंडी चिन्याळी सौड़ म लगदू इ द्वी बड़ा मेळा त टिरी डाम का भेंठ चड़िगिन पर और मेळा-थौळा भी ठेला ठेला म हि होणा छन।
अर जु मेळा होणा भि छन वंूमा मां चीन कि छाया छ, खाणू लाणू सब। पहाड़ पलायन कु सिकार छ गौं बिटि लोग छोटा बजारू म ऐग्या छोटा बाजारू का बड़ा बाजारू मा अर बड़ा बाजारू क और बड़ा बाजारू भाबर जथैं दौड़ना छन, इनि परिस्थिति मा जु लोग पाडु़ म बच्यां छन पैलि त वू तैं प्रणाम अर वंू लोगुन अपड़ी परम्परा तै ज्यूंदु रखणौ प्रयास करयूं छ यां का वास्ता हमु तैं वूंकु रिणि होणू चैणू छ।